चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश के पास अपने ल्हुंजे एयरबेस को तेजी से विकसित करना शुरू कर दिया है. यह एयरबेस अब चीन की वायुसेना के लिए एक बड़ा ऑपरेशन सेंटर बनता जा रहा है. इसमें नए विमान शेल्टर, हैंगर और बड़ी पार्किंग जगहें बनाई जा रही हैं. जिसकी एक हालिया सैटेलाइट तस्वीर सामने आई है. यह सब उस समय हो रहा है जब भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर बातचीत जारी है. वहीं, आर्मी चीफ भी ड्रेगन को लेकर ये बात पहले ही कह चुके हैं कि चीन के साथ LAC स्थिति स्टेबल है, लेकिन काफी सेंसिटिव है.
ल्हुंजे एयरबेस तिब्बत में, समुद्र तल से लगभग 3,700 मीटर ऊंचाई पर है. यह भारत के तवांग से बहुत पास है, जो कि चीन “दक्षिण तिब्बत” बताकर दावा करता है. तवांग न केवल सामरिक रूप से बल्कि धार्मिक रूप से भी बहुत अहम है. इस एयरबेस से चीन की वायुसेना भारत की सीमाओं के बहुत करीब से ऑपरेशन कर सकती है.
क्या है चीन की तैयारी
जहां लद्दाख और पश्चिमी सेक्टर 2020 के गलवान संघर्ष के बाद मुख्य सुर्खियों में रहे, वहीं अब चीन की पूर्वी सेक्टर पर यह फोकस एक नए मोर्चे के संकेत दे रहा है. दिसंबर 2022 में यांग्त्से (तवांग) में हुई झड़प इसका ताजा उदाहरण है. पिछले कुछ सालों में चीन ने एलएसी के पास कई एयरबेस जैसे होटन, शिगात्से और नारी गुनसा को अपग्रेड किया है. अब ल्हुंजे पर ध्यान दिया जा रहा है. यहां लड़ाकू विमानों और ड्रोन के लिए मजबूत शेल्टर बनाए जा रहे हैं ताकि वो किसी हमले में सुरक्षित रहें. साथ ही, एयरबेस को इतना बड़ा बनाया जा रहा है कि वहां अधिक संख्या में विमान रखे जा सकें. इसमें चीन के स्टेल्थ फाइटर J-20, H-6 बमवर्षकों की तैनाती और लंबे समय तक उड़ने वाले ड्रोन WZ-7 की तैनाती हो सकती है.
भारत की जवाबी तैयारी
भारत भी पीछे नहीं है, तेजपुर, चबुआ और हाशिमारा जैसे एयरबेस को बहुत एडवांस और बेहतर बनाया जा रहा है. हाशिमारा से उड़ान भरने वाले राफेल फाइटर जेट्स, मेटियोर मिसाइलों और एडवांस सेंसरों से लैस हैं, जो चीन के इस दबाव का जवाब देने में सक्षम हैं. भारत ने अपनी वायुसेना की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ सड़कें, पुल और बॉर्डर के पास अन्य सुविधाएं भी तेजी से बनाई हैं.
भारत की S-400 वायु रक्षा प्रणाली, जो सिलिगुड़ी कॉरिडोर के पास तैनात की गई है, इस क्षेत्र को वायु हमलों से सुरक्षित करने के लिए अहम साबित हो सकती है. चीन के इस सैन्य बेस की जमीनी दूरी 100 किलोमीटर है, लेकिन ल्हुंजे की तवांग से हवाई दूरी महज 10 मिनट की है इसलिए ये भारतीय प्रतिक्रिया समय को चुनौतीपूर्ण बना देती है.

भूटान, नेपाल और रणनीतिक प्रभाव
चीन का यह कदम भूटान और नेपाल को भी रणनीतिक रूप से चिंतित कर सकता है, क्योंकि दोनों देशों की सीमाएं तिब्बत से सटी हुई हैं. इसके अलावा, ल्हुंजे की निकटता भारत के “चिकन नेक” कहे जाने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर से है, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों को भारत के मुख्य भूभाग से जोड़ता है. इस इलाके में किसी भी तरह की अस्थिरता भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा बन सकती है. हालांकि, उसके लिए भी भारत ने उत्तर पूर्व राज्यों को जोड़ने का म्यांमार के रास्ते एक ऑल्टरनेटिव रूट कलादान प्रोजेक्ट को पूरा करने का काम तेज कर दिया है.
चीन की बड़ी योजना
चीन का यह एयरबेस विस्तार उसकी लंबी योजना का हिस्सा है, जैसे उसने दक्षिण चीन सागर में किया था. चीन वहां भी धीरे-धीरे स्थायी ढांचे बनाकर अपना नियंत्रण मजबूत कर रहा है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने “तैयार रहो और युद्ध जीतने की क्षमता रखो” जैसी बातों पर जोर दिया है और ल्हुंजे इसका एक उदाहरण है.
धार्मिक और रणनीतिक पहलू
तवांग, तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण है. ऐसे में चीन का यहां सैन्य जमावड़ा सिर्फ युद्ध की तैयारी नहीं, बल्कि धार्मिक राजनीति का हिस्सा भी हो सकता है. यह केवल एक एयरबेस नहीं, बल्कि रणनीतिक दबाव बनाने की कोशिश है.